बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

अंतर्राष्ट्रीय क्षत्रिय महासभा का मिशन राजपूत इन एक्शन

                                      


मिशन                                             




    राजपूत इन एक्शन के  उद्देश्य
                                        १.    धार्मिक एकता

                                                                                                      २.    निशुल्क शिक्षा

                                                                      
                                                                                                      ३.  स्कृतिक संरक्षण 
                                                                                                           
                                                                                                      ४. आर्थिक उन्नति 

                                                                                                      ५.   राजनैतिक उत्थान
                                          
                                                                                 


 सिंहचौहान          
       राष्ट्रीय प्रचारक                                                                                            
अंतरराष्ट्रीय क्षत्रिय महासभा                                               
                                                                                     





 आज भी क्षत्रिय समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग ,राष्ट्र , एवं समाज कल्याण, के कार्यो में सयोंग करने के लिए तत्पर रहता है . इसी वर्ग की शक्ति के बल पर इस देश में हजारों क्षत्रिय संस्थाएं कार्य कर रही है , इसी वर्ग के धन एवं समय की शक्ति का उपयोग कर क्षत्रिय संस्थाए शासन में राजनैतिक भागीदारी प्राप्त करने के लिए महापुरुषों की जयंतियों , क्षत्रिय सम्मेलनों, एवं अन्य कार्यक्रमों का आयोजन करती है एवं कुछ क्षत्रिय संस्थाए सम्पन्न क्षत्रियों का क्लव बनाकर सत्ता एवं समाज में दवाव समूह बनाये रखना चाहती है जिससे समाज का कोई स्थाई हित नहीं होने बाला हमें अपने क्षत्रिय धर्मं के अनुसार संपूर्ण मानव जाती के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए.
वर्तमान परिस्थियों को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन कर क्षत्रिय धर्मं की पुनः स्थापना करनी होगी , ताकि धर्मं व्यवसाय का कारण न बनकर समाज कल्याण का माध्यम बने , वर्तमान समय में क्षत्रिय समाज की संपूर्ण शक्ति को क्षणिक समाज कल्याण के कार्यो में न लगाकर दूरगामी एवं स्थायी परिणाम देने वाले कार्यक्रमों में लगाना होगी , तभी समाज कर्तव्यों के पथ पर अग्रसर होगा . क्षत्रिय समाज के जागृत होने से संपूर्ण मानव जाति अपने धर्मं का निर्वाह करेगी . तभी राम राज्य जेसी जन कल्याणकारी शासन व्यवस्था स्थापित की जा सकेगी और यह तभी संभव होगा जब क्षत्रिय धार्मिक द्रष्टि से एक जुट हो कर क्षत्रिय धर्मं की शक्ति का निर्माण करे . इसके तहत छत्तीस कुलो की कुल्देवियो एवं ईष्ट देवतायों का आवाहनयज्ञ कर उन्हें एक जगह स्थापित कर कुलदेवी धाम का निर्माण करें जहाँ वुजुर्गों के सरक्षण के लिए वृद्ध आश्रमों , गायों की रक्षा के लिए गोशालाए एवं क्षत्रिय समाज के विकाश के लिए चिकित्सा शिक्षा , इन्गिनियारिग एवं उच्च शिक्षा की व्यवस्था निशुल्क प्रदान की जाति हो ऐसे गुरुकुल स्थापित किये जाये तो यह हमारा क्षत्रिय धर्म जागरण एवं समाज कल्याण के लिए उठाया गया पहला , मजबूत एवं स्थाई कदम होगा, जिसके परिणाम स्वरूप संपूर्ण समाज के संचालन के शूत्र क्षत्रिय धर्मं के पालन करने बालो के हाथों में होगें .


27 टिप्‍पणियां:

  1. राजपूत (RAJPOOT / RAJPUT) -



    राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल है। यह नाम राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान में राजपूतों के अनेक किले हैं। दहिया, डांगी, राठौर, कुशवाहा, सिसोदिया, चौहान, जादों, पंवार आदि इनके प्रमुख गोत्र हैं। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी, किन्तु बाद में इन वर्णों के अंतर्गत अनेक जातियाँ बन गईं। क्षत्रिय वर्ण की अनेक जातियों और उनमें समाहित कई देशों की विदेशी जातियों को कालांतर में राजपूत जाति कहा जाने लगा। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ।



    राजपूतों में मेवाड़ के महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान का नाम सबसे ऊंचा है।





    राजपूतों की उत्पत्ति



    इन राजपूत वंशों की उत्पत्ति के विषय में विद्धानों के दो मत प्रचलित हैं- एक का मानना है कि राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी है, जबकि दूसरे का मानना है कि, राजपूतों की उत्पत्ति भारतीय है। 12वीं शताब्दी के बाद् के उत्तर भारत के इतिहास को टोड ने 'राजपूत काल' भी कहा है। कुछ इतिहासकारों ने प्राचीन काल एवं मध्य काल को 'संधि काल' भी कहा है। इस काल के महत्वपूर्ण राजपूत वंशों में राष्ट्रकूट वंश, दहिया वन्श, डांगी वंश, चालुक्य वंश, चौहान वंश, चंदेल वंश, परमार वंश एवं गहड़वाल वंश आदि आते हैं।

    विदेशी उत्पत्ति के समर्थकों में महत्वपूर्ण स्थान 'कर्नल जेम्स टॉड' का है। वे राजपूतों को विदेशी सीथियन जाति की सन्तान मानते हैं। तर्क के समर्थन में टॉड ने दोनों जातियों (राजपूत एवं सीथियन) की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति की समानता की बात कही है। उनके अनुसार दोनों में रहन-सहन, वेश-भूषा की समानता, मांसाहार का प्रचलन, रथ के द्वारा युद्ध को संचालित करना, याज्ञिक अनुष्ठानों का प्रचलन, अस्त्र-शस्त्र की पूजा का प्रचलन आदि से यह प्रतीत होता है कि राजपूत सीथियन के ही वंशज थे।

    विलियम क्रुक ने 'कर्नल जेम्स टॉड' के मत का समर्थन किया है। 'वी.ए. स्मिथ' के अनुसार शक तथा कुषाण जैसी विदेशी जातियां भारत आकर यहां के समाज में पूर्णतः घुल-मिल गयीं। इन देशी एवं विदेशी जातियों के मिश्रण से ही राजपूतों की उत्पत्ति हुई।

    भारतीय इतिहासकारों में 'ईश्वरी प्रसाद' एवं 'डी.आर. भंडारकर' ने भारतीय समाज में विदेशी मूल के लोगों के सम्मिलित होने को ही राजपूतों की उत्पत्ति का कारण माना है। भण्डारकर, कनिंघम आदि ने इन्हे विदेशी बताया है। । इन तमाम विद्वानों के तर्को के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि, यद्यपि राजपूत क्षत्रियों के वंशज थे, फिर भी उनमें विदेशी रक्त का मिश्रण अवश्य था। अतः वे न तो पूर्णतः विदेशी थे, न तो पूर्णत भारतीय।

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    1. please read the history carefully after that write some thing on rajput......... Please dont write nonsense here

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  2. इतिहास





    राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हिँदू धर्म के अनुसार राजपूतोँ का काम शासन चलाना होता है।कुछ राजपुतवन्श अपने को भगवान श्री राम के वन्शज बताते है।राजस्थान का अशिकन्श भाग ब्रिटिश काल मे राजपुताना के नाम से जाना जाता था।

    हमारे देश का इतिहास आदिकाल से गौरवमय रहा है,क्षत्रिओं की आन बान शान की रक्षा केवल वीर पुरुषों ने ही नही की बल्कि हमारे देश की वीरांगनायें भी किसी से पीछे नही रहीं। आन बान शान की कहानी है लेकिन समय के झकोरों ने इसे पता नही कहां विलुप्त कर दिया है !





    भारत देश का नामकरण





    राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हिँदू धर्म के अनुसार राजपूतोँ का काम शासन चलाना होता है। भगवान श्री राम ने भी क्षत्रिय कुल मेँ ही जन्म लिया था।हम अपने देश को "भारत" इसलिए कहते हैँ क्योँकि हस्तिनपुर नरेश दुश्यन्त के पुत्र "भरत" यहाँ के राजा हुआ करते थे।राजपूतोँ के असीम कुर्बानियोँ तथा योगदान की बदौलत ही हिँदू धर्म और भारत देश दुनिया के नक्शे पर अहम स्थान रखता है। भारत का नाम्,भगवान रिशबदेव के पुत्र भरत च्करवति के नाम पर भारत हुआ(शरइ मद भागवत्) | राजपूतों के महान राजाओ में सर्वप्रथम भगबान श्री राम का नाम आता है | महाभारत में भी कौरव, पांडव तथा मगध नरेश जरासंध एवं अन्य राजा क्षत्रिय कुल के थे | पृथ्वी राज चौहान राजपूतों के महान राजा थे |



    राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि जो केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा,इसलिये ही राजपूत नाम चला,लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता,यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म "सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय" का रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति हुयी। राजपूत को तीन शब्दों में प्रयोग किया जाता है,पहला "राजपूत",दूसरा "क्षत्रिय"और तीसरा "ठाकुर",आज इन शब्दों की भ्रान्तियों के कारण यह राजपूत समाज कभी कभी बहुत ही संकट में पड जाता है। राजपूत कहलाने से आज की सरकार और देश के लोग यह समझ बैठते है कि यह जाति बहुत ऊंची है और इसे जितना हो सके नीचा दिखाया जाना चाहिये !



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  3. chuahanji aapka anterrashtriya kshatriya samaj m.p. ke sirf gwalior ya chambal area me hi chalta hai kya?
    m.p. ke anya jile me to iska koi namo-nishan hi nahi hai na hi koi padadhikari, sadasya hai?
    why??

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  4. राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का नंबर हमें दें

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  5. उत्तर
    1. बिहार में ये कुशवाहा की उपजाति है। जो बाद में स्वतंत्र हो गई। पर,शादियां कुशवाहों में अभी भी होती हैं।ये अपने को क्षत्रिय कुल की कहती है। मध्य प्रदेश में ओबीसी में है।

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    2. दांगी 1984 तक सामान्य वर्ग में आते थे बाद में मध्यप्रदेश सरकार ने ओबीसी में कर किया। दांगी राजपूत में आते है जो कि राजा डांग के वंशज है।

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    3. दांगी समाज पेशेगत पहचान के आधार पर कृषक-(कोईरी) जरूर कहा गया पर कभी इन्होंने स्वंय को कुशवाहा पहचान स्वीकार नहीं किया था ।

      जगदेव बाबू के आह्वान पर जरूर समाजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी पर जब कोईरी-कृषक समूह की अधिकतर जातियों (मगहीया,बनाफर,जलवार,कन्नौजिया इत्यादि ने ) कुशवाहा पहचान ग्रहण कर लिया तो फिर दांगी पहचान वहां से फिर स्वतंत्र पहचान बन गई ।


      इसलिए तथ्यों को गलत पेश नहीं करें । बिहार में कोईरी समूह के अंदर कुशवाहा,कछवाहा,कुशवाह नाम की कोई लीनेज-मदरकास्ट-उपजाति नहीं है ये स्वंय को क्षत्रिय-श्रेष्ठत बनने के लिए कुशवाहा पहचान ग्रहण किया गया है ।

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    1. दांगी कछवाहा राजपूत होते हैं जो विशेषकर मध्य प्रदेश के विदिशा और सागर जिले में निवास करते हैं यहां पर कछवाहा दांगी समाज के राजाओं द्वारा कई किलो का निर्माण करवाया गया जो आज भी देखने योग्य हैं जिनकी नकासेदार सुंदरता वास्तव मे तारीफ योग है शिवपुरी जिले में भी निवास करते हैं सागर के पास गढ़पहरा का किला, खुरई का किला, ऐरण का किला, भानगढ़ का किला, नरसिंहगढ़ का किला, विश्व प्रसिद्ध शिवपुरी का किला दांगी राजाओं द्वारा बनवाए गए थे परंतु कालांतर में इन किलो पर कई राजाओं ने शासन किया और किलो का जीर्णोद्धार किया जिससे यह ऐतिहासिक किले दांगी राजाओं की होते हुए भी अन्य राजाओं के नाम पर जाने जाने लगे परंतु दांगी राजाओं द्वारा स्थापित किए गए शिलालेखों से ज्ञात होता है दांगी कछवाहा राजपूत शासन काल कितना स्वर्णिम रहा होगा। दांगी कछवाहा राजपूतों में गोत्र मैं निगोनिया ,भदोनिया, नदिया बड़े गोत्र हैं इन गोत्रों के राजाओं ने कई वर्षों तक शासन किया जिनका इतिहास आज भी सुरक्षित है परंतु कुछ राजनीतिक लोगों द्वारा इनका इतिहास छुपाया गया है मगर सत्य कभी हारता नहीं है सत्य भाई एक न एक दिन सामने आ ही जाता है
      कुछ काछी-जाति के लोग बिहार में जो काछी पटेल होते हैं वह अपने आप को दांगी बताते हैं। कछवाहा दांगी राजपूतों की वंशावली आज भी पुरोहितों तथा भाटो और राओजी के पास सुरक्षित है यह वंशावली साबित करती है कि दांगी कछवाहा राजपूत कि एक खांप है दांगी कछवाहा राजपूत दिखने में शारीरिक रूप से हष्ट पुष्ट होते हैं इनकी बड़ी बड़ी आंखें,, चौड़ी छाती और शारीरिक बनावट अन्य लोगों से अलग होती है जो इनमें छत्रिय कछवाहा राजपूत होने के गुण साबित करती है आज भी राजस्थान मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश मैं दांगी बड़े-बड़े जागीरदार है यहां इनको ठाकुर साहब की उपाधि से अन्य जाति के लोग पुकारते हैं

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    2. सन 1030 के लगभग कछवाहा राजपूत -देलणपोता के वंशज आगे चलकर दांगी कछवाहा राजपूत कहलाए
      सन 1600 -1700 के लगभग में औरंगजेब ने दांगी कछवाहा राजपूत वंश के ठाकुर खेमचंद जी के पराक्रम को देखकर तोहफे में सागर जिले के पास खुरई तहसील की जागीदारी दी जिसमें ऐरण भी शामिल था, शिवपुरी तथा गढ़पहरा पर पहले से ही दांगी राजाओं का शासन था ही इसी के साथ दांगी राजाओं का वैवाहिक संबंध परमार, परिहार, चंदेल, बुंदेला, पांवार, तोमर ,चौहान आदि राजपूतों में होता रहा जो आज भी कायम है दांगी अपनी बात के पक्के होते हैं और अपने बच्चन की मर्यादा रखने के लिए अपने प्राणो का का भी निछावर कर देते हैं(रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन ना जाए) साथ ही दांगी लड़ाई में भी बहुत खतरनाक होते हैं इन्हें रणबंका कहा जाता है (जा को बेरी सुख से सोए, ताके जीवन को धिक्कार) पर अमल करता है दांगी कछवाहा राजपूतों का इतिहास बहुत बड़ा है किंतु कुछ राजनीज्ञो द्वारा यह इतिहास छुपाया गया है जो धीरे-धीरे शिलालेखों तथा पुराणों और सामंत प्रथा के कालांतर रचित ग्रंथों से और भाटो के द्वारा रचित वंशावली के माध्यम से से इनका स्वर्णिम इतिहास पता चलता है
      जय मां भवानी
      जय राजपूताना
      जय श्री महाकाल

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  8. बिहार में कुशवंशी(कुशवाहा), दांगी और बनाफ़र के बीच शादी संबंध होते हैं। ये लोग स्वयं को राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश का वंशज कुशवाहा कहते हैं।

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    1. कोई दांगी स्वंय को कुश का वंशज नहीं कहते हैं ना कभी कुशवाहा पहचान पर सहमति बन पाई ना स्वीकार हुआ ।

      दांगी क्षत्रिय पुराने खतियान पर दर्ज थी पर जमीनी पहचान कोईरी थी । समाजीकरण का प्रयास जरूर हुआ था और होना भी चाहिए ।

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    2. जब भारत सरकार कोईरी को कुशवाहा मानती है और आर दांगी की जमीनी पहचान कोईरी बता रहे हैं,फिर दांगी ,कुशवाहा कैसे न हुआ?

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  9. दांगी कछवाहा राजपूतों का इतिहास काफी स्वरणिम रहा है कछवाहा वंशी राजा दूल्हेराय जी ने आमेर में मीणाओं को हराया और एक नया शहर बसाया जिसका नाम है जमवारामगढ़ यही से दांगी समाज में कुलदेवी पूजन की शुरुआत हुई। यह दांगी कछवाहा राजपूत मुख्यतः मध्यप्रदेश के सागर,विदिशा, भोपाल, सीहोर, अशोकनगर, गुना, टीकमगढ़, निवाडी आदि जिलों में निवास करते हैं और यह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के गजट मे सामान्य श्रेणी में आते हैं लेकिन व्यावरा , राजगढ़, मंदसौर, देवास ,आगर मालवा आदि जिलों में निवास करने वाले दांगी अलग वंश से हैं एवं इनकी कुलदेवी आंजणा माता हैं यही दांगी राज्य सरकार के गजट मे पिछड़ा वर्ग में आते हैं लेकिन गजट में दांगी कछवाहा राजपूतों एवं कोईरी दांगीयों का निवास स्थान स्पष्ट न होने से यह भ्रम की स्थिति बन रही है और सभी दांगी पिछडे वर्ग का फायदा उठा रहे हैं।

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    1. बलराम दांगी कछवाहा राजपूत आरोन जिला गुना मध्यप्रदेश

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    2. सागर मे दांगी समाज पिछडा बरग मे आता है और बिहार राजस्थान मे अति पिछडा बरग मे आता है जो obc के बाद की श्रेनि है

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  10. दांगी समाज के लोग सागर और आस पास के इलाको मे ठाकुर लिखते हैं और इनकी सागर जिले मे इनकी राजपूतो मे बेबहिक संबंध भी होते है लेकिन सागर और आस पास के इलाको को छोड़ दे तो इनका राजपूतो से कोई संबंध नही होता ना ही इतिहास में एनका राजपूत होने का कोई सबूत मिलता है

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  11. आप सभी को पता दांगी राजपूत होते है और कछवाहा होते है यह मुख्यतः सागर विदिशा टीकमगढ़ दतिया रायसेन जालोर नरवरगढ मै मुख्य है यह कछवाहा दांगी राजपूत है महाराजा दंग कछवाहा राजपूत से इन की उत्पत्ति है इनमे 22 राजाओं ने मुख्य रूप से शासन किया है इनकी बुंदेलखंड मै 24 किले है जो दांगी कछवाहा राजपूतों द्वारा बनवाये गये है यह राजपूत है जिन्हे ठाकुर बोलने जाता है

    विहार के ढागी है जो अलग है मध्यप्रदेश के राजगढ व्यावरा मन्दसौर चित्तौड़ आदि डांगी भी अलग है
    दांगी कछवाहा राजपूत बुंदेलखंड मै ही निवास करते है
    एक भाई वोल रहै थे कि दांगी के विवाह संम्बंध सागर मे अन्य राजपूतों अकेले नहीं पूरे बुंदेलखंड मै होते है ठीक गूगल पे तो आप कुछ भी डाल सकते हो

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  12. जय भवानी
    कछवाहा दांगी राजपूतों का इतिहास
    सबत् 11 शताब्दी मै देलपोत शाखा के दांगी नरवरगढ से जालोर पृस्ताथन करतै और महाराज देलणजी ( देहपाल) मध्यप्रदेश के अशोक नगर गढपेहरा पर आते यहाँ पर देलणजी जी और रानी राजकुमारी गढपेहरा डंग मै आते तब गौड राजा राजकुमारी का डोला मागते पर डेलण जी मना कर देते तब गौड राजाओ से युद्ध की स्थिति बनती तब जाकर जालोर 400 कछवाहा दांगी राजपूत आते और सागर सागर स्थित गौड का गढपेहरा पर आक्रमण करते गढपेहरा मात्र एक गढ था तब किला नहीं बना था तब सभी कछवाहा दांगी सरदार सागर गढपेहरा पर आक्रमण कर गौड की 360 मौजे जीत कर लेते और अपना अधिपत्य जमा लेते पर राजा डेलण जी को डाग पसंद नहीं आती और बह जालोर लौट जाते और 400 कछवाहा दांगी सरदार को 360 मौजे का जागीरदार बना देते जिस्से 360 गाँव पर उप मौजे बनती है और निहाल सिंह दांगी सवत् 1155 मै गढपेहरा के राजा बनते और एक किले का निर्माण करवाते और अपनी गढपेहरा उप राजधानी बना लेते जिस्से झांसी दतिया टीकमगढ़ सागर शिवपुरी विदिशा मै इनका राज फैला जाता और देहपाल जी के परिवार लोग भी आ जाते जिस्से सागर को दांगी बाडा और दागी बोहा कि पहचान मिल जाति है यहाँ दांगी राजपूतों ने कई किलो का निर्माण कराते और सवत् 1510 एक स्वतंत्र राज रहा बुदेला राजपूतों का उदय होते ही दांगी राजपूत कमजोर पढ जाते और अपने अस्तित्व को धीरे धीरे खोने लगते और जगीदार के रूप मै अपना राज चलाते सन् 1727 मै राजा पृथ्वीपत सिंह दांगी कछवाहा एक चिनगारी बनकर उभरता और खोया हुआ राज बापस कर लेता तब उपरांत मराठा साम्राज्य आ जाता और दांगी राजपूतों कि शक्ति छीन होती और कमजोर हो जाते और यह लोग जालोर के चौहान और सैलरी राजपूतों साहता मागते पर समय पर कोई साहयता नही करता तब यह लोग अम्बर के राजा जयसिंह कछवाहा को पत्र लिखते तो अम्बर के राजा इन कछवाहा दांगी सरदारों को जागीरदार के रुप मे राज बापिस करवा देते और परन्तु यह लोग अन्य सभी रिश्तेदारी तोड देते और अपना स्वभिमान मय जीवन जीते है सन् 18शताब्दी वीरसिंह देव बुदेला जी एक राज सभी आयोजित करते तब और तीन तेरह और छत्तीस के क्षत्रियों मै शादी सम्बन्ध का पृस्ताव परिवार होता जिन्में दांगी के कुल 10 मौजे के जागीरदार ही उपस्थित होते और शादी सम्बन्ध पर राजी नामा तैयार होता पर पर आगे के जागीरदार तैयार नहीं होते
    इस बात का पूणता पृमाण ( ठाकुर भगवत सिंह दांगी जिला निवाडी पर आज भी पत्र मौजूद है और केई जागीरदार पर भी
    नोट० मध्यप्रदेश के 74गजट सविधान मै दांगी राजपूतों का उल्लेख परिणति किया बुंदेलखंड का गजट के नाम से भी जाना जाता है
    नोट _ बुंदेलखंड के दांगी कछवाहा राजपूत है शुद्ध
    जय भवानी

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